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रुचि के स्थान

भैरमगढ़ में भैरमदेव

यह एक अल्पज्ञात ऐतिहासिक स्थल है, जिसे कभी नागों की राजधानी का गौरव प्राप्त था। उस नगर में आज भी बहुत से पुराने मंदिर, मूर्तियां हैं। बारहवीं सदी में नाग राजा नरसिंह देव की राजधानी भैरमगढ़ रही। यहां के हर चट्टानों पर आपको उकेरी गई देव प्रतिमाओं के दर्शन हो जाएंगे। झाड़ियों में आपको उन पुराने मंदिरों के अवशेष मिल जाएंगे। एक चट्टान पर भैरव की विशाल प्रतिमा उकेरी गई है। जिस पर मंदिर बना हुआ है। दो चौकोर शिलाओं पर चरणों के निशान उकेरे गए हैं। मंदिर के पीछे ऐतिहासिक तालाब भी है। भैरमदेव मेला कुल तीन दिवस का होता है। भैरमदेव मंदिर भैरमगढ़ मुख्य सड़क से लगभग एक किमी पूर्व दिशा में स्थित है। मंदिर तक जाने हेतु पक्की सड़क है। मंदिर से 500 मीटर की परिधि में कुछ पुरातात्विक अवशेष देखने को मिलेंगे, जिसमें राजाओं के समय के महल जीर्ण-शर्ण अवस्था में है, जिसे सीता कुटिया कहा जाता है। मंदिर के कुछ दूरी में चारों ओर से निर्मित बाड़ा है जहां पर पत्थर से बना लगभग 12 से 14 फीट ऊंचा तथा 8 से 10 फीट चौड़ा एक द्वार है जिसे हाथी द्वार कहते हैं।

भद्रकाली

एकमात्र काली माता का मंदिर जो भोपालपट्टनम से दक्षिण दिशा में तारलागुड़ा मार्ग पर 18 किमी दूर पहाड़ी में स्थित है। माँ भद्रकाली जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे कालिका देवी गुट्टा कहते हैं। गुट्टा शब्द तेलगू भाषा से है जिसका अर्थ पहाड़ होता है। इस पहाड़ी की ऊँचाई 100 फीट है एवं मंदिर तक जाने के लिए सीढ़िया बनी है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन यहां मेला लगता है। यहां से चार किमी दूर इंद्रावती और गोदावरी का संगम स्थल है। यहां पर गुमरगुंडा के सदाप्रेमानंद स्वामी जी के द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई एवं इस कुंड को गौतम कुंड का नाम दिया गया। प्राकृतिक सौंदर्य की मनमोहक छटा से भरपूर इस संगम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को स्नान किया जाता है एवं पूजा-अर्चना की जाती है।

सकल नारायण गुफा 

भोपालपट्टनम ब्लॉक मुख्यालय से छह किमी की दूरी पर स्थित चेरपल्ली नामक गांव से होते हुए 8 किमी दक्षिण दिशा की ओर गोवर्धन नामक पर्वत पर सकनारायण गुफा स्थित है। गुफा के भीतर एकांत में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं। यहां चिंतावागु नदी के किनारे उत्तर दिशा की ओर भगवान श्रीकृष्णजी का सकलनारायण मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष हजारों की भीड़ में श्रद्धालु यहां आकर श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना कर बीते हुए वर्ष से विदाई लेकर नए वर्ष की आगमन पर सुख-समृद्धि की कामना करते है।

जैतालूर मेला

बीजापुर जिला मुख्यालय का समीपस्थ गांव जैतालूर आस्था का प्रतीक है, जो जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव कोदई माता के मेले के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ हर वर्ष पौष पूर्णिमा के पहले मेला आयोजित होता है, जिसे हल्बी में पूस जात्रा कहा जाता है। यह मेला तीन दिनों का होता है। पहले एवं दूसरे दिन कोदई माता के छत्र को गांव के घरों में परिक्रमा कराई जाती है। संध्याकाल से अर्द्धरात्रि तक ढोल-नगाड़े की ताल पर देवी नृत्य किया जाता है। तीसरे एवं अंमित दिन जन समूह उत्सव मनाने जुटती है। इस मेले के साथ ही क्षेत्र में मेले-मड़ई का आयोजन शुरू होता है।

चिकटराज

बीजापुर नगर के रहवासियों के आराध्य देव हैं चिकटराज, जिनका पूरे बीजापुर जिले के क्षेत्रवासियों के लिए ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व है। बीजापुर से गंगालूर मार्ग पर लगभग एक किमी की दूरी पर चिकटराज देव का मंदिर है। चिकटराज देव 6-7 फुट लंबे बांसनुमा आकार के एक काष्ठ में विराजमान हैं। मंदिर के आगे यत्र-तत्र गणेश, विष्णु, शिव, लक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की प्राचीन शिल्प मूर्तियां स्थापित है। प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि के रामनवमी के बाद आने वाले प्रथम मंगलवार को यहां मेले का आयोजन होता है।

महादेव घाट

बीजापुर से भोपालपट्टनम की ओर बढ़ते हुए घाटी पड़ती है। जिसे महादेव घाट कहते हैं। घाटी में शिवजी का मंदिर है। घाटी में घुमावदार मोड़ से गुजरते केशकाल घाट की याद ताजा हो जाती है। वनाच्छादित ऊंची-ऊंची पहाड़ियां सड़क से गुजरते राहगीरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

इंचमपल्ली बांध

ताड़लागुड़ा क्षेत्र के चंदूर-दुधेड़ा गांव की सीमा से लगे गोदावरी नदी पर इंचमपल्ली बांध परियोजना अपने आप में इतिहास है। जिसका सर्वेक्षण एवं निर्माण कार्य सन् 1983 में प्रारंभ होना बताया जाता है। गोदावरी नदी में छत्तीसगढ़ की सीमा से प्रारंभ की गई इस बांध में सतह से लगभग 45 से 50 फीट ऊँची एवं 100 से 200 फीट लम्बी तथा 10 से 12 फीट चौड़ी तीन दीवारें बनी हैं। तीनों दीवारों को जोड़ती लगभग 12 से 15 फीट ऊँची एक और दीवार भी बनी है।

मट्टीमरका

भोपालपट्टनम ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर मट्टीमरका गांव अब चर्चित हो चला है। यहां इंद्रावती नदी के किनारे दूर तक बिछी सुनहरी रेत और ऊँची-नीची पत्थरों के बीच से कल-कल बहती इंद्रावती का सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां नदी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा बनाते हुए बहती है।

नीलम सरई

उसूर ब्लॉक स्थित नीलम सरई जलधारा हाल के वर्षों में सुर्खियों में आने के बाद बीजापुर के दर्शनीय स्थलों में यह सिरमौर बन चुका है। उसूर के सोढ़ी पारा से लगभग 7 किमी दूर तीन पहाड़ियों की चढ़ाई को पार कर पहुंचा जा सकता है नीलम सरई जलप्रपात तक।

नंबी

उसूर ग्राम से आठ किमी पूर्व की ओर नडपल्ली ग्राम को पार कर जाने पर नंबी ग्राम आता है। इस ग्राम से तीन किमी जंगल की ओर दक्षिण दिशा में पहाड़ पर बहुत ही ऊँचा जलप्रपात है जिसे नीचे से देखने पर एक पतली जल धारा बहने के समान दिखाई देती है। इसलिए इसे नंबी जलधारा कहते हैं। धरती की सतह से लगभग 300 फीट की ऊँचाई से गिरने वाले इस जलधारा को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह बस्तर की सबसे ऊँची जलधारा है।

दोबे

उसूर से नीलम सरई की यात्रा रोमांच से भरी हुई है। यहां पहुंचकर मन किसी दुनिया में खो जाता है। नीलम सरई से मात्र तीन किमी की दूरी पर एक बेहद शानदार पर्यटन स्थल दोबे स्थित है। दोबे को पत्थरों का गांव कहा जा सकता है। क्योंकि यहां चारों तरफ पत्थरों से बनी हुई अद्भुत कलाकृतियां देखी जा सकती है। बड़े-बड़े पत्थरों से बनी हुई अकल्पनीय कलाकृतियां कहीं-कहीं टाइटेनिक जहाज की तरह प्रतीत होती है। इस जगह पर रात्रि विश्राम करते हुए आप प्रकृति को करीब से महसूस कर सकते हैं।

लंकापल्ली

बीजापुर जिला मुख्यालय से 33 किमी दक्षिण दिशा की ओर आवापल्ली ग्राम है जो उसूर ब्लॉक का मुख्यालय है। यहां से पश्चिम दिशा में लगभग 15 किमी पर लंकापल्ली नामक ग्राम बसा हुआ है, जो यहां वर्ष के 12 माह निरंतर बहने वाले जलप्रपात के लिए प्रसिद्ध है। प्रकृति की गोद में शांत, निश्च्छल एवं स्वच्छंद रूप से अविरल बहती इस जलप्रपात को स्थानीय लोग गोंडी बोली में बोक्ता कहते हैं, चूंकि लंकापल्ली ग्राम के पास यह जलप्रपात स्थित है, इसलिए इसे लंकापल्ली झरने के नाम से जाना जाता है।

इंद्रावती :राष्ट्रीय उद्यान

1258.352 वर्ग किमी में विस्तृत इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान जगदलपुर से 170 किमी की दूरी पर स्थित है। राष्ट्रीय उद्यान की मुख्य सीमा इंद्रावती नदी तट पर 120 किमी है। वर्ष 2014 में बफर एरिया के 282.328 वर्ग किमी को शामिल कर वृद्धि किया गया, जिससे इसका क्षेत्रफल बढ़कर 1540.700 वर्ग किमी हो गया। इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा 1978 में मिला। 1982 में इसे टाईगर रिजर्व घोषित किया गया। यहां बाघ, वन भैंसे, बारहसिंधा के अलावा तेंदुआ, चौसिंघा, सांभर, जंगली सुअर व अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं।

पामेड़ अभ्यारण्य

यह अभ्यारण्य जिले के उसूर विकासखण्ड में विस्तृत है। 262 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत पामेड़ अभ्यारण्य वन भैंसों की शरणस्थल के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।

भैरमगढ़ अभ्यारण्य

143 वर्ग किमी में फैला यह अभ्यारण्य वन भैंसों को संरक्षण प्रदान करने हेतु वर्ष 1983 में गठित हुआ।

तिमेड़ का अनुपम सौंदर्य

भोपालपट्नम से लगे तिमेड़ गांव के समीप इंद्रावती नदी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बीच सीमा बनाती है। नदी पर उच्च स्तर पुल का निर्माण हुआ है। यहां नदी का विहंगम स्वरूप देखने को मिलता है। नजारों को केमरे में कैद करने प्रकृति प्रेमी बड़ी संख्या में पहुँचते हैं।

मद्देड़ बाजा

राष्ट्रीय राजमार्ग 63 पर बसा भोपालपट्टनम तहसील का मद्देड़ गांव अपने बाजे के लिए समूचे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। जिले की विभिन्न विशेषताओं में यह बाजा भी अपना विशेष महत्व रखता है। घरों के मांगलिक एवं अन्य अवसरों पर इसकी मांग हमेशा से रही है। इस मांग के पीछे एक वजह यह है कि ये पुराने सदाबहार गीतों के साथ नई पीढ़ी के पसंदीदा गीतों को भी बजाते हैं और इसके स्वर, ताल में इतनी मिठास होती है कि लोग झूमने-नाचने पर मजबूर हो जाते हैं। इसमें शहनाई, बाजा, हार्न, झुनझुना जैसे वाद्य यंत्र शामिल हैं।